Saturday, May 15, 2010

"जय भैरव नाथ"

ॐ हीं बं बटुकाए, आप दुधारनाथ कुरु कुरु॥


बटुकाए ही ॐ नमः नमः शिवाये।

बाबा भैरव नाथ को कलयुग का साक्षात् देवता माना जाता है। ऐतिहासिक पुराणों के आधार पर बागवान भैरव नाथ का जन्म अत्यंत प्रादुर्भाव एवं अनंत शून्य माना जाता है। जिसे ब्रह्माण्ड व स्वयं ब्रम्हा जी का प्रतिक माना जाता है। इनके कोई लौकिक माता - पिता नहीं है। इनका जन्म राक्षस अथवा अत्याचारियों को मारनेके लिए नहीं बल्कि ब्रम्हा जी की मति फिर जाने पर उन्हें धर्म का मर्म समझाने हेतु इन्होने अवतार धारण किया था। "भ " से विश्व का भरण, "र " से विश्व में रमण और "व " से वमन अर्थात सृष्टि का पालन पोषण कर्ता हेतु इनका नाम भैरव हुआ।


भगवान् भैरव नाथ जी की पूजा अराधना बहुत ही सहज और सरल है। भैरव नाथ जी केवल प्रेम भावना के भूखे है, किसी मूल्यवान वस्तु के नहीं। अत्यंत सहजता के कारण ही इन्होने अपना स्थान शमशान घाटको चुना, जहाँ कोई नहीं जाना चाहता। अजर और अमर होने के नाते यह हमेशा पृथ्वी पर भ्रमण करते रहते है। आप भगवान् शिव के पांचवे रूद्र अवतार है। ऐसी मान्यता है की जहाँ - जहाँ इनकी पूजा होती है, वहां यह दिन में एक बार किसी न किसी रूप में ज़रूर जाते है। उज्जैन में बना भगवान् महाकाल भैरव मंदिर इस बात का प्रमाण है, कि भगवान् वहां सदैव विराजमान रहते है। वहां जाने वाले मदिरा का भोग प्रभु स्वयं ग्रहण करते है । काफी शोध और परीक्षणों के बाद भी अब तक यह पता नहीं चल पाया है, कि प्रभु द्वारा ग्रहण किया किया गया भोग जाता कहाँ है..? ठीक उसी प्रकार दिल्ली के पुराना किला स्थित प्राचीन किलकारी भैरव मंदिर भी इस बात की गवाही देता है, कि भगवान् यहाँ वास करते है कहा जाता है, कि पांडव कुल के महाबली भीम के आह्वान पर भैरव बाबा यहाँ आये है साथ ही मंदिर में भक्तिभाव, प्रेम और आस्था से कि गयी पूजा से भक्तो को यहाँ मनवांछित फल कि प्राप्ति होती है

भैरव नाथ जी कि विस्तारपूर्वक कथा स्कंध पुराण में है. भगवान् शिव द्वारा रचित रुद्रमाल्या ग्रन्थ में भी भगवान् भैरव नाथ कि कथा का वर्णन है भगवान् शिव कहते है, कि जो कोई बटुक भैरव कि सच्चे मन से आराधना करता है, उसे मृत्यु पश्चात कैलाश धाम पर स्थान प्राप्त होता है

जैसी सोह्बात बैठिये, वैसे ही गुण दीन

कदली, सीप, भुजंग मुख, एक स्वाति गुण तीन


"जय भैरव नाथ"